Mangal Gareh Aur Vivah (Manglik Yog ka Vivahik Jivan me Perbhav) मंगल ग्रह और विवाह (मांगलिक योग का विवाह पर प्रभाव )
Mangal Gareh Aur Vivah (Manglik Yog ka Vivahik Jivan me Perbhav)
मंगल ग्रह और विवाह (मांगलिक योग का विवाह पर प्रभाव )
यह आलेख मङ्गलम वैदिक वर्ल्ड ज्योतिष-वास्तु एक्सपर्ट (रत्न एवं रुद्राक्ष सलाहकार) टीम द्वारा मिलकर लिखा गया है। अन्य आलेख पढ़ने लिए ब्लॉग पर बने रहे और नित्य https://astrowapdaily.blogspot.com को विजिट करें और ज्योतिष-वास्तु जानकरी अपडेट रखें। www.astrospeaking.com
मङ्गलम वैदिक वर्ल्ड ज्योतिष-वास्तु एक्सपर्ट (रत्न एवं रुद्राक्ष सलाहकार) के अनुसार मंगल ग्रह पृथ्वी का निकटतम पड़ोसी ग्रह है। सौरमंडल में यह सातवाँ सबसे बड़ा ग्रह है। ज्योतिष में मंगल को कालपुरुष का पराक्रम माना गया है। ग्रह मंडल में इन्हें सेनापति का पद प्राप्त है। मंगल पराक्रम, स्फूर्ति साहस, आत्मविश्वास, धैर्य, देश प्रेम, बल, रक्त, दृढ़ता, महत्वाकांक्षा, खतरे उठाने की शक्ति, क्रोध, घृणा, उत्तेजना, झूठ एवम शस्त्र विद्या के अधिपति माने गये हैं।
मङ्गलम वैदिक वर्ल्ड ज्योतिष-वास्तु एक्सपर्ट (रत्न एवं रुद्राक्ष सलाहकार) के अनुसार यदि जन्मकुंडली मिलान में सावधानी रखे तो निश्चित ही मंगल मंगलकारी होगा।
यदि आप अपना व्यक्तिगत भविष्यफल जानना चाहते है, या आप जानना चाहते है कि आपके विवाहिक जीवन की समस्याओ का समाधान कैसे होगा, या आप भी जानना चाहते है अपनी कुंडली का विस्तृत मिलान? या विवाह से सम्बंधित आपका कोई भी प्रश्न है? तो विलम्ब न करें आज ही हमारे एक्सपर्ट से सम्पर्क करें +91 9625698881 अपना विस्तृत भविष्यफल एवं समस्या समाधान बताये जायेंगे।
श्रीश्याम ज्योतिष-वास्तु केंद्र गुरूजी से जन्म कुंडली विश्लेषण करवा कर कालसर्प दोष का निवारण कराया जाना चाहिए। अभी कॉल करें +91 9625698881 हार थक चुके लोग, निराश और हताश निःसंकोच सम्पर्क करें। अभी सम्पर्क करें +91 9625698881
मंगलम वैदिक वर्ल्ड गुरूजी के अनुसार हमारे किसी भी आलेख में रत्नों, रुद्राक्ष, पारद या अन्य किसी भी माला, स्फटिक आदि प्रोडक्ट्स के बारे में जानकारी दी जाती है, वो कई बार विस्तृत न होकर सक्षिप्त होती है। विद्वान मत भी यही कहता है और गुरूजी का अनुभव भी यही कहता है कि रत्न अमृत और जहर दोनों के गुण खुद समाए हुए होते है। अच्छी गुणवत्ता का रत्न पात्र जातक द्वारा धारण कर लिया जाये तो ये शुभ प्रभाव दिखा कर अमृत का काम करता है और यदि अपात्र ये रत्न धारण कर ले तो ये अशुभ प्रभाव दिखा कर जहर का कार्य करते है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस बात में कोई शक नहीं है कि रत्न, कुंडली की समस्याओं को बहुत हद तक कम कर देते हैं। लेकिन किसी अच्छे जानकार के सुझाव के बिना इन्हें धारण करना नकारात्मक प्रभाव भी दे सकता है। इसलिए पढ़ या सुनकर, बिना उचित सलाह के इन नगों को धारण करने से बचें।
नोट : कोई भी उपाय करने से पहले अच्छी तरह से ज्योतिष विद्वान से जन्मपत्रिका विश्लेषण अवश्य करवा लें। विश्लेषण के बाद उपाय करवाने के लिए कॉल करें- 9625698881
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मंगल ग्रह और विवाह (मांगलिक योग का विवाह पर प्रभाव )
मङ्गलम वैदिक वर्ल्ड ज्योतिष-वास्तु एक्सपर्ट (रत्न एवं रुद्राक्ष सलाहकार) के अनुसार मंगल ग्रह पृथ्वी का निकटतम पड़ोसी ग्रह है। सौरमंडल में यह सातवाँ सबसे बड़ा ग्रह है। ज्योतिष में मंगल को कालपुरुष का पराक्रम माना गया है। ग्रह मंडल में इन्हें सेनापति का पद प्राप्त है। मंगल पराक्रम, स्फूर्ति साहस, आत्मविश्वास, धैर्य, देश प्रेम, बल, रक्त, दृढ़ता, महत्वाकांक्षा, खतरे उठाने की शक्ति, क्रोध, घृणा, उत्तेजना, झूठ एवम शस्त्र विद्या के अधिपति माने गये हैं।
मङ्गलम वैदिक वर्ल्ड ज्योतिष-वास्तु एक्सपर्ट (रत्न एवं रुद्राक्ष सलाहकार) के अनुसार ज्योतिष में मंगल मेष और वृशिचक राशि के स्वामी हैं। मंगल मकर राशि में उच्च के और कर्क राशि में नीच के हो जाते है। नक्षत्र की बात करें तो मंगल को मृगशिरा, चित्रा एवम धनिष्ठा नक्षत्र का स्वामित्व प्राप्त है। मंगल ग्रह मांगलिकता (शुभत्व/मंगलमय) का प्रतीक भी है। मंगल ग्रह की मूलभूत प्रवर्ती प्रजनन और कायाकल्प (परिवर्तन) है। मंगल ग्रह के स्वभाव की बात करें तो मंगल ग्रह को अशुभ, क्रूर, घातक कहा गया है। मंगल अग्नि तत्व होने से सभी प्राणियों को जीवन शक्ति, प्रेरणा उत्साह तथा साहस का प्रेरक होता है।
मांगलिक योग में मंगल का प्रभाव :
मङ्गलम वैदिक वर्ल्ड ज्योतिष-वास्तु एक्सपर्ट (रत्न एवं रुद्राक्ष सलाहकार) के अनुसार जन्मकुंडली में लग्न स्थान से 1, 4, 7, 8, 12वें स्थान में मंगल हो तो ऐसी कुंडली मांगलिक कुण्डली कहलाती है। जिस व्यक्ति की कुंडली में मंगल इन भावों में हो तो उसे विवाह के लिए मांगलिक जीवनसाथी ही खोजना चाहिए। यदि वर-वधू में से एक की कुंडली में मंगल 1, 4, 7, 8, 12वें भावों में हो तथा दूसरे की कुंडली में नहीं हो तो इस प्रकार के जातको के विवाह संबंध नहीं होने चाहिए। यदि ऐसी स्थिति में विवाह संपन्न हो जाते हैं तो या तो ऐसे संबंध कष्टकारी होते हैं या फिर दोनों में मृत्यु योग की भी संभावना हो सकती है। अत: दोष का निवारण भली भाँति कर लेना चाहिए।
भाव (घर) के अनुसार मंगल की स्थिति क्या विपरीत प्रभाव डालती है-
- प्रथम भाव : जन्मकुंडली में मंगल प्रथम भाव में हो तो कार्य सिद्धि में विघ्न, सिर में पीडा, चंचल प्रवृति, व्यक्तित्व पर प्रभाव, स्वभाव, स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा, समृद्धि का प्रभाव डालता है।
- द्वितीय भाव : पैतृक सम्पति सुख का अभाव, परिवार, वाणी, निर्दयी प्रवृति, जीवन साथियो के बीच हिंसा, अप्राकृतिक मैथून की इच्छा।
- चतुर्थ भाव : परिवार व भाइयो से सुख का अभाव, घरेलू वातावरण, संबंधी, गुप्त प्रेम संबंधी, विवाहित जीवन में ससुराल पक्ष और परिवार का हस्तक्षेप, आनुवांशिक प्रकृति।
- सप्तम भाव : वैवाहिक जीवन प्रभावित, पतिपत्नी का व्यक्तित्व, जीवन साथी के साथ रिश्ता, काम शक्ति, जीवन के लिए खतरा, यौन रोग।
- अष्टम भाव : मित्रों का शत्रुवत आचरण, आयु, जननांग, विवाहेतर जीवन, अनुकूल उद्यम करने पर भी मनोरथ कम।
- द्वादश भाव : विवाह, विवाहेतर काम क्रीड़ा, क्राम क्रीड़ा या योन संबंधो से उत्पन्न रोग, काम क्रीड़ा कमजोरी, शयन सुविधा, शादी में नुकसान, नजदीकी लोगो से अलगाव, परस्पर वैमनस्य, गुप्त शत्रु।
नोट : द्वितीय भाव में स्थित मंगल या अन्य पाप ग्रहों का उतना ही प्रभाव है जितना कि 1, 4, 7, 8 और 12 भावों में, द्वितीय भाव में पाप ग्रहों को कम आँकना बिलकुल भी उचित नहीं। यह अनुभव है। द्वितीय भाव में मंगल या अन्य पाप ग्रह आजीवन अविवाहित या वैवाहिक जीवन को कष्टप्रद बना सकता है।
मंगलीक दोष कब शांत या कम हो जाता है
- दूसरी कुंडली में भी 1, 4, 7, 8 एवम 12वें भाव में पाप ग्रह शनि, राहु, सूर्य, मंगल हो तो भौम मंगल दोष शांत हो जाता है।
- यदि मंगल नीच, अस्त या वक्री हो तथा कुंडली के 1, 4, 8, 12 भाव में हो तो मंगल दोष कम हो जाता है।
- मेष का मंगल लग्न में, वृशिचक के चतुर्थ में, वृषभ के सप्तम में, कुंभ के अष्टम एवम धनु के द्वादश में हो तो मंगल दोष कम हो जाता है।
- यदि मंगल स्वराशि मेष, वृशिचक या मूल त्रिकोण उच्च या मित्र राशि में हो तो दोष में कमी आ जाती है।
- कर्क एवम सिंह लग्न में लग्नस्थ मंगल का दोष कम हो जाता है।
- 3, 6, 11 भावों में अशुभ ग्रह, केंद्र, त्रिकोण में शुभ ग्रह हो तथा सप्तमेश सप्तम भाव में हो तो दोष कम हो जाता है।
- वधू की कुंडली में गुरु केंद्र त्रिकोण में हो तो दोष कम हो जाता है।
- वर की कुंडली में शुक्र केंद्र त्रिकोण में हो तो दोष कम हो जाता है।
- चन्द्र, गुरु या बुध से मंगल युति कर रहा हो तो दोष कम हो जाता है।
- दूसरे भाव में मिथुन, कन्या का मंगल हो तो मंगल दोष कम हो जाता है।
- चतुर्थ भाव में शुक्र की राशि (वृषभ, तुला) का मंगल दोष कम हो जाता है।
- अष्टम भाव में गुरु राशि (धनु, मीन) का मंगल हो तो दोष कम हो जाता है।
- सातवें भाव में मंगल पर यदि शुक्र की दृष्टि हो तो दोष कम हो जाता है।
Manglik Dosha Shanti मंगल दोष निवृति के उपाय :
- मंगल मंत्र (ऊँ अं अगारकाय नम:) का जप 11100 की संख्या में करें।
- मंगल यंत्र शुभ मुहूर्त में बनवा कर, शुद्ध-सिद्ध करवा कर घर पर स्थापित करें और नित्य पूजा करें।
- मंगलवार के व्रत नियम पूर्वक करें
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मंगलिक दोष शांति/मंगल दोष निवारण पूजा या कवच
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